स्वदर्शन

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मेरी    बर्बादी   की   दुआएं  करो,

मैं तो  आबाद  होकर दिखाऊँगा!

देखने लायक बड़े हो जाओ फ़िर,

तिरी मारी हर  ठोकर दिखाऊंगा!

ख़्वाहिश है नकली स्वप्न देखने की,

पहले पहल  मैं सोकर  दिखाऊंगा!

तुम्हें  अपने   होने  पर  घमण्ड  है,

हो  सके  तुम्हें  खोकर  दिखाऊंगा!

कितना  रोता है सभी  को हँसा कर,

मिरे भीतर का  जोकर  दिखाऊंगा!

विध्वंस की सभी टक्कर दिखाऊंगा!

शांति  का बीज  बोकर दिखाऊंगा!

पहले पहाड़ के दर्शन  करो  फिर,

एक छोटा सा  कंकड़ दिखाऊंगा!

समझ  लेना कि  क्या है  ज़िंदगी,

चलो मिरे साथ शंकर दिखाऊंगा!

महादेववर कवि निलय

भारतीय, पूर्णियाँ, बिहार