श्री गणेश

जिन्दगी की धुप से बचता हर व्यक्ति

वट वृक्ष की छाया की तलाश में है

अपनों से ईर्ष्या-शक के  रोग से ग्रसित

परायों में अपनापन खोज रहा है

ना चाहते हुए भी अपनी चाहतों के

मकडजाल में फंसता जा रहा है

अंतर रूदन का नाद कंठ वाणी अवरुद्ध कर

चेतना और विश्वास को खा रहा है

लौट आ लौट आ सुकून

अपनों में खोज आश्रय

जिस दिन पा गया

वहीं से नूतन जीवन का श्री गणेश कर !

बेला विरदी 

1381, सेक्टर 18,अर्बन एस्टेट,

 जगाधरी-हरियाणा