वाद विवाद करना होता
मूर्ख से विष बेल समान
सर्वप्रथम लाएंगे तुम्हे
खुद की बेशर्मी के समकक्ष
पराजित करेंगें तुम्हे ही वो
बेमतलब के तर्क-कुतर्को से
ज़हर होगा पीना अन्ततः
तुम्हें ही आत्मग्लानि का !
चुप रह कर मिल जाए गर
जवाब अनकहे सवालों का
रिश्तो में खूबसूरत एहसास
महसूस लाजिमी होता है
ख्वाहिशो की उडान है
अनंत आस्मां से भी ऊंची
जीवन यहाँ एक कम है
तमाम हसरतों के लिए !
मासूमियत भरी निगाहों में
दर्द ज़माने भर के छिपे हैं
जवाँदिल रहें तो नजराने
हर सुरमई शाम में समाए हैं
जिन्दगी के साथ हरपल
बहना है मँजिल की ओर
साथ यहाँ कोई देता नहीं
मतलब के सब रिश्ते हैं !
मुनीष भाटिया
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