संजीव नी||

जब कभी बुलंदी से फिसल जाती है|

जब कभी बुलंदी से फिसल जाती है,

जिंदगी मौत के सांचे में ढल जाती है |

चाहता हूँ सब को दुआ दूँ लेकिन,

कभी दिल से आह निकल जाती है|

अपनी माँ लगनें लगीं हैं,तेरी माँ मुझको,

दोस्ती बढ़ के रिश्तों में बदल जाती हैं|

प्यार फूलों से मिजाजन बहुत हैं,लेकिन,

ये तबियत कभी काँटों से बहल जाती है|

छोड़ नहीं सकता संजीव, कि उम्मीद मेरी,

लड़खड़ाती है,और कभी सम्हल जाती है|

संजीव ठाकुर,15, रिक्रिएशन रोड

चोबे कालोनी, रायपुर छ.ग.

62664 19992, 9009415415.