मेरी प्रिय कागली!
तू बात करै है पाछली
मैं कह्वू हूँ आगली
थोड़ी सी तू पागली
मेरी प्रिय कागली!
रोता-रोता आँसू आया,
नाक सू आया सेडा।
रूप की तू घणी जोर की
रोता-रोता होगा मुन्डा टेडा।
मेरी प्रिय कागली!
सेडा-लाळ थारै छूटगा
रोता-रोता टूट्या थारा गोडा।
म्हे तो ठहर्या ठरकी बावळा
बणगा म्हे तो मोडा।
बता तू अब घराँँ किया आऊँ
तू फोड़ दे म्हारा गोडा
तेरा हाथ पड़्या है लोडा।
मेरी प्रिय कागली!
रूप की तू घणी सोवणी
तेरी नाक का के कहणा
लाग्ग पजर्या थोड़ा-बोळा घूँघा।
मत दे आँगळी नाक म
होव्व तो मेरो के ले
बणगा म्हे भी तेर्र गेल पूँगा।
मेरी प्रिय कागली!
ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर,राज.
मो. 9001321438