आबाद कर सकूँ

अपनी आँखों तले तुझे मैं निकाल सकूँ

और   ख़ुदको  मैं   आबाद   कर   सकूँ

मेरे लफ्ज़ोमें अब इतनी ताक़त नही की

जो गुज़रे हालात कागज़ पर उतार सकूँ

मैं मजबूर नही बस चुप हूँ मेरी ख़ामोशी

के  किस्से  अपने  दिल  को  सुना  सकूँ

करीब इतना कोई नही  की उनके काँधे

पर सर रख  कर  मन हल्का  कर  सकूँ

सब रूठ  गए ए  ज़िंदगी तू भी रूठ जा

इसलिए तुझे भी मैं  अलविदा कह सकूँ

ज़हर में भी अब वो  जोर  नही रहा कि

दो बूँद से में अपनी  सादगी  मिटा सकूँ

      नीक राजपूत

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