विधा-रास छंद —-

     सृजन शब्द-सपने

माधव पिय मान चली सजते  , हैं सपने ।

लगता अब जीवन का हर क्षण , तुम अपने ।।

सब कुछ पाया तुझको पाकर, प्रिय सजना ।

सदा पुकारूँ तुझको प्रीतम, है भजना ।।1!!

अष्ट याम तुझको देखूँ मैं, हूँ जपती ।

विरहन तेरी हिय रखती जो ,हूँ तपती ।।

एक दर्श की प्यास लिए हूँ, अब विनती ।

जीवन तुझ बिन लगता जैसे, पल गिनती ।।2!!

आजा मेरे प्यारे मोहन, हिय बसते ।

जीवन के इन साँसो को हो, तुम कसते ।।

हर-पल तुझको चाहा मैंने, मन तरसे ।

नैना हारे रो-रोकर जो, जल बरसे ।।3!!

—योगिता चौरसिया ” प्रेमा “

    —–मंडला म.प्र.