उड़ जा पंख समेटे पखेरू किसके लिए अब रोना है ।
जीते जी हुआ न किसी का अब किसका तुझे होना है ।
उड़ जा पंख समेटे पखेरू……………
नाचा गाया खेल दिखाया दुनिया के इस मेले में ।
सारा जीवन खो दिया अपना अपनों के ही झमेले में ।
दाग लगे हैं जो चादर में अब तो उसी को धोना है ।
उड़ जा पंख समेटे पखेरू………….
भ्रम की टाटी तोड़ न पाया पड़ करके तू माया में ।
सुख की घड़ियाँ खोज रहा था मृग तृष्णा की छाया में ।
कितना भी तू पंख मार ले कुछ नहीं अब होना है ।
उड़ जा पंख समेटे पखेरू……………
बेटा बेटी हुए पराए अब किसका मुँह तकता है ।
माई बापू बीबी में से कोई न अपना हो सकता है ।
इस दुनिया से उस दुनिया खातिर तुझे अकेले सोना है ।
उड़ जा पंख समेटे पखेरू…………..
हीरिया जीरिया चाहे हो तिरिया सबका यहाँ पर मेला है ।
रे मूरख तू ये क्यों भूला दुनिया बस एक झमेला है ।
जितना सोचा था तू दुनिया उतना नहीं सलोना है ।
उड़ जा पंख समेटे पखेरू……………
माया मोह के सुंदर रूप में घर-घर बसी एक मुनिया है ।
हाव भाव से इसके मोहित लगती मनभावन दुनिया है ।
सारे मोती बिखर गए अब आगे कुछ ना पिरोना है ।
उड़ जा पंख समेटे पखेरू……………
चंचल चित को शांत कर पगले चलने की अब बारी है ।
दुनिया के सब साधन छूट गए अब राम ही नाम सवारी है ।
छोड़ के सारी चिंताओं को अब चिर निद्रा में सोना है ।
उड़ जा पंख समेट पखेरू……………
एम•एस •अंसारी”बेबस”
कोलकाता पश्चिम बंगाल