एक चंचल मन, खिलता यौवन
और नैनों की अठखेलियाँ
कोमल तन, महका उपवन
खिल गयी सारी कलियाँ
जब लहराकर निकली प्रियतमा, मन खाये हिचकोले
मन खाये हिचकोले तन उसके चारों ओर डोले
उठी मन में तरंग, रुकती नहीं रोके से
झूम झूम कर गाउँ, रूकूँ ना किसी के रोके से
उस सुंदरी के रूप की व्याख्या,
कोई कैसे कर पाए
उसके सामने आते ही शब्द मेरे थम जाए
हिरनी जैसी चाल है उसकी, घुँघर वाले बाल
नीली गहरी आँखें उसकी, होठ है लाल लाल
नजरों में उसकी जादू है, और होठों पर मुस्कान है
इस नशीले जादू से पर वो खुद अंजान है
उसके रूप को देखकर तो इंद्र भी मोहित हो जाए
जो एक बार देखले देखता ही रह जाए
जितना भी लिखूँ उसके बारे में कम है
पता नहीं ये हकीकत है या मन का भरम है
(गरिमा शर्मा “गीतांजलि”)
मध्यप्रदेश