मालवी कविता

म्हारा मेदा का पिंड के ली गयो कागलो

मालवा में एक नानी के सेरमें आई के हुवो प्यार ,

श्याम वर्ण साफ्ट वेयरइंजिनियर से हुई आखा चार ,

बाप बोल्यो समाज के कईदिखावांगा मुंडो ,

ताबड़ तोब कई ने कई रास्तोजल्दी ढून्ड़ो

बड़ा बुडा ने समजायो नानाअबे मत अकडो,

जल्दी से अबे इनका ब्याव कोरस्तो पकड़ो ,

माँ बाप ने भी आव देख्यो नेताव ,

छोरी को आखा तीज पे मांडीद्यो ब्याव

डार्क कलर लाडो इतरातो हुवोलायो बारात ,

सबने खूब दारु पि ने कर दीआखी रात ,

आयो बिदाई को टेम सब की आखाथी नम

कोई भी नि छिपाई पाया थाबिदाई को गम

बिदाई को दरद एक बाप सेजादा कुन जाने ,

प्याई बेटी भी आब जाया बिनानी माने ,

आंदा छेड़ा में से काकी भाभीरोई री थी ,

गीत गई गई के लाडी की बिदाईहुई री थी

भाई बोलयो बेन थारी याद घनीआवेगी ,

अबे म्हारा से लड़ाई ने लाडकुन लडावेगी,

बाप बोलयो मत जा म्हारीप्यारी नानी ,

बाहर से आवा पे अबे कुनदेगो म्हारे पानी

माँ बोली म्हारो तो भाग जहुवो दोगलो ,

म्हारा मेदा का पिंड के लीगयो कागलो |

राजेश भंडारी “बाबु”

१०४ महावीर नगर इंदौर

९००९५०२७३४