पुंज रश्मि का बटोर, प्रात का बढ़ा प्रसार।
नीड़ से चली बटेर, खोज जीवनी अधार।
भृंग का समीप भाव, हर्ष दे कली अपार।
शंख की पवित्र गूंज, से मिटे सभी विकार।
ओस से धुले वितान, हैं हिमाद्रि के समान।
मान कर्म को प्रधान,खेत को चले किसान।
झुंड में चले विहंग, ले नवीन सी उमंग।
ग्वाल वृन्द ले मृदंग, सिंधु की बने तरंग।
रात्रि का वियोग गीत, भोगती विभा अधीर।
वेदिका अभीष्ट प्रीत, आहुती बना समीर।
देखते प्रकाश पुंज, हैं प्रसन्न भृंग कुंज।
खोजती समाज लाज,रीति का घना निकुंज।
पंकज त्रिपाठी हरदोई उ प्र
9452444081