घोड़े, गधे, शेर साथ शोर अजीब है
किसान सड़क पे चुनाव करीब है ।
जीतकर भी हार जाए वो लेकिन
सिंहासन हाथ मे बहुत खुशनसीब है ।
जननायक जब सारे मौकापरस्त हो
किसान सड़क पे चुनाव करीब है ।
चूल्हे में अपने ही गिरे जब पानी
चुनावी सिगड़ियां जलाना तरकीब है ।
स्वाभिमान था जो अर्श से फर्श पर
किसान सड़क पे चुनाव करीब है ।
नेक नियत उनके, जो खोट भरमाई
अमीर तो अमीर, गरीब ही गरीब है ।
जख्म गहराते वो, खैरात भी बांटते
किसान सड़क पे चुनाव करीब है ।
तपस्या सियासत थी भाव देते कौन
दाल रोटी दूर निवाले बदनसीब है।
फूल माला से लदे, गुंडे मौवाली
सत्ता की ताकत भी कितना अजीब है ।
सुरेश वैष्णव
भिलाई ( छत्तीसगढ़ )