चुनाव करीब है..

घोड़े, गधे, शेर साथ शोर अजीब है

किसान  सड़क  पे चुनाव  करीब है ।

जीतकर भी  हार  जाए  वो लेकिन

सिंहासन हाथ मे बहुत खुशनसीब है ।

जननायक जब सारे मौकापरस्त हो

किसान  सड़क  पे  चुनाव  करीब है ।

चूल्हे  में अपने ही  गिरे  जब  पानी 

चुनावी  सिगड़ियां जलाना तरकीब है ।

स्वाभिमान था जो अर्श से फर्श पर

किसान  सड़क  पे  चुनाव करीब  है ।

नेक नियत उनके, जो खोट भरमाई

अमीर तो अमीर, गरीब  ही  गरीब है ।

जख्म गहराते वो, खैरात भी बांटते 

किसान  सड़क  पे  चुनाव करीब है ।

तपस्या सियासत थी भाव देते कौन

दाल  रोटी  दूर  निवाले  बदनसीब  है।

फूल  माला  से  लदे,  गुंडे  मौवाली 

सत्ता की ताकत भी कितना अजीब है ।

             सुरेश वैष्णव

      भिलाई ( छत्तीसगढ़ )