व्यर्थ गया सब ज्ञान,
गईं व्यर्थ सब तकरीरें।
सिद्ध हुए कालांतर में रिश्ते,
ज्यों पानी पर लकीरें।।
पर्दा भ्रम का हटा आँख से,
शांत हुई उर की ज्वाला।
अंधकारमय जीवन में सहसा,
उभरा एक किरण उजाला।।
एक बार फ़िर अंतर्तम में,
यूँ जग उठा नव विश्वास।
चहुँ और फ़ैला वसन्त,
और खिल उठे पलाश।।
डा. सारिका मुकेश
वेल्लूर (तमिलनाडु)
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