इतना कौन चलता है ज़िन्दगी के लिए
सूरज तो निकलता है बन्दगी के लिए।
हाथ में हाथ हो तो जहां अपना लगता है,
दिल जब धड़कता हो बेखुदी में किसी के लिए।
शाम के उजालों ने रात की कहानी कह दी
इतना भी न करीब आओ तुम किसी के लिए।
दिल कोई मुकम्मल तस्वीर तलाश करता है
अपने दिल को समझाओ तुम खुदी के लिए ।
मैंने शीशा संभाल रखा था ज़माने से छुपकर
खुद ही तोड़ डाला है मैंने अपनी खुशी के लिए।
कोई आकर चला जायेगा जो तेरे दर से,
आंख नम होगी फिर इक दिन उसी के लिए।
मैंने पैगाम ए मोहब्बत जो भेजा उसको
वो समझा के मेरी गरज है उसी के लिए ।
सल्तनत खुद अपनी कहानी लिखती है इक दिन
खंडहर रोते हैं वीराने में खुदी के लिए।
मोहब्बत इक नाम है,कोई हक़ीक़त तो नहीं
लोग मिटा देते हैं खुद को बेखुदी के लिए।
सभी के दिल बेकरार हैं कि करार मिले,
कौन नहीं तड़पा यहां ज़िन्दगी के लिए।
Anshu Pradhan