बाँसुरी हूँ मैं तुम्हारी

चाँद से हँस चाँदनी ने, यूँ कहा यह एक दिन ।

खूब बदलो रूप अपने, मैं सदा पहचान लूँगी।

साथ दूँगी मैं सदा ही, चाँदनी हूँ मैं तुम्हारी।।

दिन,महीने हैं गुजरते, बदल जाती साल है ।

सृष्टि का यह नियम शाश्वत, यह समय की चाल है ।

सब बँधे हैं इस नियम से, नियम डोरी थाम लूँगी ।

साथ हूँगी मैं तुम्हारा, अनुगामनी हूँ मैं तुम्हारी ।।

चाँदनी हूँ  मैं तुम्हारी ।।

घूमता ऋतु चक्र प्रति पल, मैं कभी ओझल रहूँगी ।

किन्तु तुम तुम निश्चिन्त रहना, मैं सदा निर्मल रहूँगी ।

प्रेम की रसधार बनकर, इस जगत में मैं बहूँगी ।

मैं कहूँगी यह सदा, अनुरागनी हूँ मैं तुम्हारी ।

चाँदनी हूँ मैं तुम्हारी ।।

बक्र होते हो कभी तुम, और होते गोल हो ।

जो भी हो मेरे लिये प्रिय, तुम सदा अनमोल हो ।

प्राण! मैं तेरे लिये हर, पीर को हँस कर सहूँगी ।

मैं रहूँगी,गीत हो तुम, रागनी हूँ मैं तुम्हारी ।

साथ दूँगी मैं सदा ही, चाँदनी हूँ मैंतुम्हारी ।।

   👉 श्याम सुन्दर श्रीवास्तव ‘कोमल’

                            व्याख्याता-हिन्दी

         अशोक उ०मा०विद्यालय, लहार

               जिला-भिण्ड (म०प्र०)