आसानी से कह दिया, बाला ने यह बात।
इन लड़कों का काम है, करना बस उत्पात।।
करना बस उत्पात, अन्य कुछ काम नहीं है।
फिर भी आते लेट, क्लास में शर्म नहीं है।।
ऐसी बातें बोल, न पगली! मनमानी से।
अगणित हैं दायित्व, न जीते आसानी से।।
(2)
भगकर प्रातःकाल ही, बाटें कुछ अखबार।
कुछ कोचिंग देने चलें, कुछ बेचें रजिगार।।
कुछ बेचें रजिगार, वस्त्र-फेरी कुछ करते।
रेन्ट, फूड का खर्च, आँक दृग आँसू भरते।।
लक्ष्य प्राप्ति हित ‘दक्ष’, बढ़ें श्रमबाट निरंतर।
बहुधा भूखे क्लास, बाँवरी! आयें भगकर।।
(रजिगार– शाक-सब्जी)
✍कौशल किशोर मौर्य ‘दक्ष’
मो. नं.= 8090051242
मीतौं सण्डीला हरदोई यूपी