ग़ज़ल

रूठे-रूठे यार मना कर आया हूँ।

दरिया ऊपर पुलबना कर आया हूँ।

गुलशन को है मेरे पर इतराज़ बहुत,

काँटों को क्यों फूल बना कर आया हूँ।

आओ बताऊं जीवन किस को कहते हैं

भवँर भीतर दीप जला कर आया हूँ।

लाखों सांप उनके चार चुफेरे थे,

घोंसले से चूजों को बचा कर आया हूँ।

मानांे या ना मानों, पर, यह सच्च है,

अपनी अर्थी आप उठा कर आया हूँ।

मेरा चौथा कर के सज्जन लौट रहे,

मैं ज़िंदा हूँ, मैं कुरला कर आया हूँ।

दुःखों की बेरी पर लाखों बेर पड़े,

माली से सारे तुड़वा कर आया हूँ।

सूर्य भांति तब ही दिखता चन्द्रमा,

मुद्धतों वाले दाग़ मिटा कर आया हूँ।

सब की पूजा होगी ईश्वर की भांति,

पाषाणों पर तिलक लगा कर आया हूँ।

मैं तो बात बड़ों की टाल नहीं सकता,

‘बालम’ दुश्मन यार बना कर आया हूँ।

बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब)

मोः 98156-25409