इन्दौर । कोई किसी को लिखना सीखा नहीं सकता। पढ़ने का अभ्यास करते हुए कब कलम शब्दों,वाक्यों को रचने लगती है, लेखक जान ही नहीं पाता। पर अपने लेखन से संतुष्ट न होना ही सच्चे लेखक की पहचान है। पाठकों के दिल में उतरे ऐसा लेखन करने के लिए निरंतर रियाज़ करना जरूरी है। राग का रियाज़ करते समय सुर ज़रा भी ग़लत लगे तो पुनः आरंभ किया जाता है। उसी तरह लेखक को अपना लिखा सन्तोषजनक न लगने पर बार-बार ख़ारिज करना चाहिए। अंतराल बहुत सुखद परिणाम देता है।
लेखन को लेकर यह बात सुपरिचित लेखिका डॉ. सीमा व्यास ने कही। वे वामा साहित्य मंच द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बतौर अतिथि अपना उद्बोधन दे रहीं थी। अध्यक्ष अमरवीर चड्ढा, सचिव इंदु पारस के नेतृत्व में कार्यक्रम की शुरुआत में आशा मुंशी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। वामा साहित्य मंच के सदस्यों ने रचना का पाठ किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मंजू मिश्रा ने किया। सदस्यों ने एक से बढ़कर रचनाएं सुनाई। शांता पारेख ने कविता, शीला श्रीवास्तव ने लघु कथा, महिमा शुक्ला, शोभना नाईक, शिरिन भावसार, मंजरी निधि, सरलता मेहता, आशा गर्ग, निरूपमा त्रिवेदी, गायत्री मेहता, प्रतिभा जैन, आशा मुंशी, प्रभा मेहता, भावना दामले, हंसा मेहता, मधु टाक (गजल), करूणा प्रजापति, स्नेह श्रीवास्तव, डाॅ. वन्दना मिश्र, डॉ. विद्यावती पाराशर ने अपनी रचनाओं को सुंदर ढंग से प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी। कहानी प्रतियोगिता में शैली बक्षी की कहानी इंद्रधनुष को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। अंजु निगम की कहानी विगत ने द्वितीय स्थान हासिल किया। रूपाली पाटनी की कहानी समय के साथ तीसरे नम्बर पर रहीं। अंत में करुणा प्रजापति ने आभार माना।