देर तक बैठे रहे..
एक कोने में,
अंदर की बारिश महसूस
करते रहे, भींगते रहे
अब इस बारिश में तेरी
यादें बो दूं
तो तुम कविता बन उग
आना मेरे अंदर..
मेरे पास..
मेरे होठों पर
मुस्कुराने वाली..
और तुम आना जैसे
एक एक पत्ता खिल उठे
मेरे जिस्म पर , कभी
न मुरझाये जो..
मैं अपनी जान छिड़कती रहूँ
बूँद बूँद पानी जैसे..और
तुम जिंदा रहना..इस
बंजर जमीन में..
-सोनाली मराठे