बचपन में मैं जिस स्कूल में पढ़ता था , उस गाँव में स्कूल के मास्टर जी जब बार-बार खेत को, लोटा लेकर जाते-आते थे, तब मैं उनसे पूछता ,क्या हुआ मास्टर जी? वे कहते-लीकेज |
उस समय मैं छोटा था, इसका मतलब नहीं समझ पाता था, पर जब थोड़ा बड़ा हुआ, तो पता चला उनके कहे लीकेज का मतलब लूज मोशन होता है । मास्टर जी का, दरअसल अंग्रेजी में हाथ तंग था , इसलिए गलती से लूज मोशन को लीकेज बोल दिया करते थे । उन दिनों जब मेरे दादा जी कोटे पर मिट्टी का तेल लेने जाया करते थे , तो कोटेदार की कम नाप पर उससे भिड़ जाया करते थे , और उससे सही नापने के लिए कहते , कोटेदार तब कहता-जब ऊपर से लेकर नीचे तक सब जगह लीकेज ही लीकेज है, तो पूरा करके कहाँ से दूँ । तब दादा जी उस पर दया दिखा कर अपना गुस्सा जब्त कर जाते और चुपचाप कम तेल लेकर लौट आते । बचपन में अम्मा की दही-हांड़ी में रखा दूध-दही चट कर जाता था, पूछने पर बता देता उन्हें, कहीं से लीकेज होगा या किसी बिल्ली आदि ने मुँह मारा होगा । कभी एक प्रधान मंत्री ने कहा था, ‘ऊपर से जो एक रुपया चलता है, नीचे लीकेज होकर पन्द्रह या बीस पैसा ही रह जाता है ।’
यह लीकेज राष्ट्रीय नहीं अंतरराष्ट्रीय समस्या है , इस पर तमाम विश्वविद्यालयों को शोध करने चाहिए, जब नाली से गैस बनाने पर हो रहे हैं, तब इस पर क्यों नहीं?
उस दिन एक परम मित्र राम लाल मिल गये । उनके चेहरे से उदासी झर रही थी, पूछा क्या हाल है ? बोले-हाल वही है, पर पिक्चर उसमें बदसूरत चिपक गयी है । मैंने कहा-कौन सी बदसूरत पिक्चर है, दिखाओ यार! थोड़ी झलक।
वे फूट पड़े-महीनों से तैयारी कर रहा था, हजारों रुपये कोचिंग और किताबों में फूंक मारे । अब पेपर लीक। टी.ई.टी. नहीं तमाशा लग रहा है , बस हाल न पूछो, पूरा दिल-दिमाग सुलग रहा है ।
मैंने उनके दिल पर मरहम लगाते हुए कहा-यह लीकेज की समस्या सदियों पुरानी है, इसके स्थाई समाधान के लिए सरकार को एक मजबूत-टिकाऊ कमेटी बनानी चाहिए भाई।
वे बोले-पहले पेपर बनाने वालों की कमेटी, फिर पेपर कराने वालों की कमेटी, फिर पेपर जांच, सही कन्डीडेट चुनने वालों की कमेटी । अब लीक करने वालों की कमेटी को पकड़ने के लिए, सरकारी जाँच करने वालों की कमेटी । फिर पकड़ कर, उन्हें सजा देने वालों की कमेटी , ऐसे लगता है । सरकार कमेटी-कमेटी का खेल, हम बेकरों से खेल कर हमें हर तरह से आउट कर पावेलियन लौटाना ही चाहती है ।” भरे दिल से, इतना कह कर राम लाल चले गये ”
मैं घर से, अपने लीकेज हो रहे जूतों के लिए फेवी क्विक लेने जा रहा था, पर सरकारी खामियों के लीकेज को बंद करने का पता नहीं, कब-कौन फेवीक्विक बने? इस चिंता का गुबार दिल में भरता जा रहा था।
-सुरेश सौरभ