ये अंत नहीं आगाज़ है…

जब जब मौत ने 

आज़माया,सताया, रुलाया

ज़िन्दगी ने हौले से आकर

कहा ये अंत नहीं आगाज़ है

तू रुक तू हार मत ये

तो दर्द का बस एक पड़ाव

है नापने को हौंसला तेरा

न थमना है न डरना 

इस खौफ़ से क्योंकि

ये अंत नहीं आगाज़ है ।।

एक नहीं दो नहीं तीन नहीं

यूँ कितनी ही बार किये

दो दो हाथ मौत ने

पर डटी रही ज़िन्दगी

डाल आँखों में आँखें 

कहती ये अंत नहीं आगाज़ है।।

कभी दिल कांपा

कभी हौंसला डगमगाया

कभी होंठ थरथराये

कभी आँखें नम हुई

बस अब ये पल आखरी है

तभी हौले से कानों में आहट

हुई जीना है अभी तुझे हर पल ज़िन्दगी का

 बिना डरे बिना रुके, बिना हारे

क्योंकि ये अंत नहीं आगाज़ है।।

इस तरह जब भी मौत ने डराया 

ज़िन्दगी ने थाम हाथ

कहा ‘ये अंत नहीं आगाज़ है’

…..मीनाक्षी सुकुमारन

        नोएडा