“जीने का सहारा बन गया”

जिंदगी नीरस थी, बस तन्हाई का आलम था

काम ने कभी भी यह अहसास नहीं होने दिया।

क्योंकि व्यस्तता इतनी होती थी कि कभी

कुछ सोचने का वक्त ही नहीं रहता था।

पैसा ही जिंदगी में सब कुछ नहीं होता है

प्यार के बिना सब खाली खाली सा लगता।

चाहती थी कुछ वक्त मेरे लिए भी निकले

पर जब चाहा खेला और किनारा कर लिया।

कहते है वक्त कभी एक सा नहीं रहता है

ऐसा ही कुछ हुआ भी, वक्त ने करवट ली।

कोई जिंदगी में ऐसे समाया की उसका साथ

वक्त पर साथ देने व जीने का सहारा बन गया।

मनीषा कुमारी, विरार, मुंबई