लट उलझी, सुलझ नहीं पाए पिया बिन
मोहे हाथों में मेहँदी ना भाए पिया बिन
लट उलझी, उलझी रे, लट उलझी, हाय राम
लट उलझी, सुलझ नहीं पाए पिया बिन।
सावन बीते, ना आए बेदर्दी
जाय बसे किस देश सखी री
विरह अगन तन-मन मोर जलाए
एक-एक पल, एक-एक जुग सा लागे
सूनी सेजिया, सेजिया रे, सूनी सेजिया, हाय राम
सूनी सेजिया, रतिया भर तड़पाए पिया बिन
मोहे रतिया में निंदिया ना आए पिया बिन
लट उलझी, सुलझ नहीं पाए पिया बिन।
बाली उमरिया, नया रे गवनवाँ
छोड़ गयो परदेश सजनवाँ
बन-बन जोगन दिन मैं बिताऊँ
पागल उमरिया पिया कैसे समझाऊँ
जोग कौनों, कौनों रे, जोग कौनों, हाय राम
जोग कौनों, जिया ना भरमाए पिया बिन
मोहे सावन की वर्षा जलाए पिया बिन
लट उलझी, सुलझ नहीं पाए पिया बिन।
– आर. आर. झा (रंजन)
टीकरी कलाँ, टीकरी बार्डर, नई दिल्ली-११००४१