मेरा मन पाखी उड़ता जाए
दूर अति दूर क्षितिज के पार
अपार आकांक्षाओं की डोर पकड़ कर
उड़ता जाए छोटे कोमल पंखों पर
विश्वास अडिग वायु झोंकों को परास्त कर
अपना पथ चुनता जाए
मन पाखी उड़ता जाए
मेरी भोर सिंदूरी सांझ सुनहरी
रात रुपहली हो गई
चपला सी चमकी हर चाहत
सतरंगी बादलों पर झूल गई
सपनों का बड़ा पुलिंदा आवारा बादल सा
सिहरन यादों की मीठी झालर उलझ गई
मन पाखी को उड़ान की
एक दिशा मिल गई
चल मन उड़ चल दूर खितिज़ के पार…!
बेला विरदी
1381, सेक्टर 18,अर्बन एस्टेट,
जगाधरी-हरियाणा