पापा जी

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बचपन से लेकर आज तक

सर पर हाथ है दुआओं का

एहसास है जिसे मेरी

छोटी छोटी हर बातों का,

न जाने कैसे पढ़ लेते हैं

अपनी बेटी के दिल की

किताब को इतने शिद्दत से

यकीं नहीं होता जरा भी मुझे

अपने प्यारे से पापाजी पर,

मैं बेइंतहा प्यार करती हूं

अपने पापा और पापाजी को

मेरे जीवन की किलकारीयों

से लेकर न‌व जीवन के पडाव पर,

पापा लिखते रोज एक न‌ई कविता

मुझको करते समपित मन से,

बाल कहानी में पात्र बनाकर

रोशन करते रोज नाम मेरा

पापा के साथ साथ बीते जिंदगी

हंसी खुशी और  मुस्कुराहटों से।

पापा जी मेरे लिए ईश्वर जैसे।

   – रूबी माधव