दिलों में आग लगाने से फ़ायदा क्या है,
दबे को और दबाने से फ़ायदा क्या है।
बदल सका न कभी सोच तू बुरी अपनी,
बदल ज़माने के जाने से फ़ायदा क्या है।
उठा सके न जो माँ बाप के कभी ग़म को,
रक़म भी इतनी कमाने से फ़ायदा क्या है।
नहीं है कोई परी जब नसीब में तेरे,
लक़ीर फिर वो बनाने से फ़ायदा क्या है।
समझ कुरान सके या न सार गीता का,
तो धर्म उनको बताने से फ़ायदा क्या है।
लगा ही देंगे तेरे घाव पर नमक रोहित,
जहां को ज़ख्म दिखाने से फ़ायदा क्या है।
रोहित चौरसिया “अटल”