धुंध भरे जीवन के पथ पर
हिम्मत ले बढ़ना होगा ।
पथ के बाधाओं के सम्मुख
हिमगिरि-सा अड़ना होगा ।
हिम प्रपात हो या अवनि बृष्टि
हुंकार तुझे भरना होगा ।
मंज़िल को पाने के खातिर
अभिमन्यु बन लड़ना होगा ।
मंज़िल किसको मिली धरा पर
कौन पूर्ण हो पाया है ?
जगत गुरू जिसको हम कहते
उसने भी ठोकर खाया है ।
ठोकर खाकर बिखर गया जो
उसने सब कुछ खोया है ।
अवसादों को जो छोड़ चला
समता के बीज वो बोया है ।
रक्त बीज बोने वालों के
सिर को कटते देखा है ।
कर्म का ही फल मिलता
यही जगत का लेखा है ।
बजी विनाश की रणभेरी तो
दुश्मन से टकराते देखा है ।
कभी नहीं कर्म पथ से
भरमाते उनको देखा है ।
कायर को पथ डाँट-डाँट कर
अपने से दूर भगाता है ।
साहस लेकर चलने वालों को
हँसकर गले लगाता है ।
क्रांति वीर अपनी करनी से
मुर्दों को रोज जगाता है ।
भय और आतंकवाद को
हाथ नहीं लगाता है ।
फिजां में नफ़रत बोने वालों को
धर्म जाति पर रोने वालों को ।
हुई भोर जागो शहीदों के वारिस
इनको मिटाओ ये करते हैं साजिश ।
चल अकेला पथ पुकारता
धरती का आँचल दुलारता ।
कहता मेरे पास तुम आओ
मुँह माँगा उपहार ले जाओ ।
एम•एस•अंसारी”शिक्षक”
गार्डेन रीच
कोलकता