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कितनी अजीब बात है न
कि वो पाँच साल देता है
चोट पर चोट
और हम हैं कि
पाँचवें साल के अंत में
सब कुछ सह कर
उसी को देते हैं वोट ।
आज़ादी के बाद से
कोई नेता खुला नहीं
इसलिए यहाँ कोई
दूध का धुला नहीं ।
इसे क्या कहें !
तुम्हारी दहशत या
अपनी मजबूरी
क्या अपना मत
देना है जरूरी !
उसे वोट न दें तो
मंदिर मस्जिद का गीत गाएगा
और जीत जाएगा ।
धनबल और बाहुबल के सहारे !
और हम बन जाएगे बेचारे ।
प्रजातंत्र,प्रजातंत्र नहीं
पैसा तंत्र दिख रहा है
क्योंकि हमारे मत का अधिकार
पाँच किलो फ्री के राशन पर
सरे आम बिक रहा है ।
राशन कम थैली बड़ी है
लाचार जनता
सुबह से
लाइन में खड़ी है ।
खाने वालों से
पीने वालों की लाइन बड़ी है ।
मँहगाई की मार
मेहनतकशों पर पड़ी
चुनाव में झूठे वादों की
लग गई झड़ी
विकास के सारे मुद्दे
रद्दी की टोकरी में पड़ी हैं ।
और जनता
नफरत फैलाने वालों के साथ
हाथ जोड़कर खड़ी है ।
कर्म के बदले धर्म की
नुमाइश है ।
आप ही बताओ इसमें
इंसानियत की कहाँ
गुंजाइश है ?
वो जो लाइन में खड़ा
अपनी खोपड़ी
खपा रहा है !
बेमतलब की बातों पर भी
ताली बजा रहा है !
और इधर नेता
अपने पाँच साल की
नाकामियों को
धर्म के नाम पर
छुपा रहा है !
वो जानता है कि
नेता उसे सता रहा है
मंदिर मस्जिद को ही
अपना विकास बता रहा है
पर वो करे तो क्या करे ?
इस परम्परा को किस
न्यायाधीश के आगे धरे ।
न्याय अन्याय सभी
उसी के दर पर खड़े हैं
बेजान-सा
मुर्दा शांति में पड़े हैं ।
मुखिया गाँव के लोगों का
अनदेखा करने लगा है
अपने को फ़कीर बता कर
दिन में पाँच-पाँच
परिधान बदलने लगा है ।
बस
विकास के नाम पर
छाँछ और मलाई है ।
गरीब की झोपड़ी में छाँछ
और फकीर के मलाई है ।
एम•एस•अंसारी”शिक्षक”
गार्डेन रीच
कोलकाता