अधूरापन

रुपा की डिलिवरी के समय भी काफी दिक्कतें आई थी…और अब तो उसे अपने बच्चे के लिए हमेशा ही साथ रहना था.

कुदरत ने भी कैसा अन्याय किया था… तकलीफों के बगैर कहां कोई चीज मिली है उसे अबतक.

वो तो उसकी मां साथ थी जो बात अबतक छुपी रही …पर कब तक..?

बहुत दिनों के बाद घर में खुशियाँ आई भी थी  तो ,वो भी अधूरेपन के साथ.

घर में लोग काफी खुश थे बधाईयों का तांता लगा था…

अरे भाई संतोष!,घर में लक्ष्मी आई है या गणेश…?

जबाव देने में संशय से भरा हुआ…. वो तो मुझे भी नही मालूम..

अरे कैसा पिता है तू…?

अच्छा छोड़ो भी ….जो है आज न कल पता चल ही जाएगा.

दोस्तों ने खूब सारी बधाई दी….

संतोष भी सही-सही कहाँ जान पाया था..उसे तो बस यही बताया गया था कि नये मेहमान का आगमन हो गया है.

जब भी जानने की कोशिश करता ,रुपा किसी न किसी बहाने टाल देती…या बातों में उलझा देती.

क्या हो जाएगा जानकर कि हमारे यहां पुत्र है या पुत्री…हम दोनों माता-पिता बन गये हैं ये काफी नही…?

संतोष अपनी पत्नी को दुखी नही करना चाहता था क्योंकि लंबे इंतजार के बाद ये पल आया था.

ठीक है रुपा..नही पुछूगां..हमारा बच्चा ही तो है लड्का हो या लड़की .ईश्वर ने जो भी दिया है हमें स्वीकार है.

सचऽऽ..आप सच कह रहें है..

हां हां रुपा!,इसमें क्या है ..मेरे लिए सब बराबर है.

संतोष की बात से रुपा को कुछ देर के लिए राहत सा महसूस हुआ…पर वो डरऽऽऽ …सच का सामना कैसा होगा.

बच्चे की परछाई बनी रुपा को देख संतोष परेशान हो उठा….कभी गोद में देती भी तो कुछ पल में ही ले लेती.

पिता का दिल बच्चे को प्यार-दुलार करने को तड़प उठता.

आखिर कब तक ये सब चलता रहता….

अपनी कसम दी पर सच तक न पहुंच पाया..

तुझे इसी बच्चे की कसम है रुपा ..क्या बात है मुझे बताओ.

एक मां का दिल रुक न पाया और हकीकत ….समुद्री तुफान की तरह.

सब कुछ बह गया…रह गया तो सिर्फ़ अधूरा सा.

सपना चन्द्रा____

कहलगाँव भागलपुर बिहार