लाड़ो हमारी

 माँ के आँचल में सजी नखरों में पली

आईना भी है दंग देख तुझे ओ कली

आज फूलों की वो मकरंद हो गयी 

आज लाड़ो हमारी , बड़ी हो गयी

बचपन में चली थी जो ऊँगली पकड़ 

डरता था कभी न छूट जाए डगर 

आज पैरों पे अपने खड़ी हो गयी 

आज लाड़ो हमारी ,बड़ी हो गयी 

लंबी है डगर ,अनजाना  सफर  

सपनों के नगर पाके सुंदर सा कँवर

आज गुड़िया हमारी पतंग हो गयी

आज लाड़ो हमारी ,बड़ी हो गयी 

दिल से दुआ है मेरी खूब फूले फले 

सपनों में भी कभी काँटा न चुभे 

आज खुशी से मेरी आँख है भर गई

आज लाड़ो हमारी , बड़ी हो गयी 

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़