थोथा-जीवी तथा भीड़जीवीयो का संघर्ष”

            ……..अरविंद विद्रोही

                                    लोकतांत्रिक व्यवस्था की सेहत और विकास के लिएआवश्यक शर्त है विरोध पक्ष का सत्ता के गलत नीतियों का विरोध करने का हक,अगर इस प्रक्रिया को सत्ता पक्ष रोक दे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक हो सकता हैlऐसा मैं मानता हूं चाहे कोई मेरी इस बात से सहमत हो अथवा न होlमुखिया जी के चौपाल का बुद्धिजीवी पटवारी लाल इसी कथन को जांचने   परखने के लिए पूरे देश भ्रमण के लिए निकल पड़ा हैlउसके कारवां     में शामिल है-‘बक-बकदास,फेकु 

दास,कीच-कीच दास,पेलहण दास तथा नोचन दास।

                वे कहीं ट्रेन से,कहीं बस से,कहीं बैलगाड़ी से,कहीं पैदल,कहीं मुफ्त हवाई जहाज से पूरे देश को छान मारे हैंlलेकिन उन्हें यह जान सुनकर माथा चकराने लगा कि देश में एक से एक जीवी लोग हैं जिनके जीविका का साधन जीवी होना ही हैl इतना कष्ट उठाने का कारण यह है कि देश की एकता,अखंडता कहीं तार-तार न  हो जाएl इनके चलते पटवारी लाल ने मुखिया जी को सूचित कर दिया था कि चौपाल में हम सब लोग जो कुछ देखे सुने हैं उसका सप्रसंग व्याख्या लोगों के बीच करेंगे lइसलिए चौपाल मैदान खचाखच लोगों से भरा होना चाहिएlगांव-गांव में प्रचार किया जा चुका है कि पटवारी लाल का प्रवचन चौपाल मैदान में होगाl देश में जीवी लोग कैसे-कैसे हैं  उनके करनी और कथनी,में उनका रूप रंग क्या है।देश के लिए वे घातक हैं अथवा देश  को गतिशील बनाने में जीवी लोग लगे हैंlसरकारी बसों जैसी बसों की व्यवस्था की गई हैlफर्क है कि सरकारी बसों में सरकार द्वारा   जो लोग लाए जाते हैं वे प्रलोभन देकर लाए जाते हैं और यहां   लोग जानने सुनने के लिए खुद आ रहे हैं।औरतों ने तो सज-धज कर सिंगार पठार कर पुरुषों को पीछे धकेल दिए हैंl जिधर नजर बढ़ाओ केवल महिला-ही-महिला दिखलाई पड़ती हैl लगता है जनतंत्र बचाने का बीड़ा महिलाओं नेअपने ऊपर उठा लिया है।जनतंत्र पैसे के बल पर हाकने वालों के दिन लद चुके है।

       भाई-बहनों,माताओ,देश के 

नौजवानों,हम लोग संपूर्ण देश का भ्रमण कर आ गए हैं और जो कुछ हम लोगों ने देखा है,समझा है उसे आपके सामने रखने जा रहे हैं lहमारा लोकतंत्र किस भंवर जाल में फंसता जा रहा है उसे ही हम लोग बतलाने के लिए खड़े हुए हैंlआंदोलन कर जो लोग सत्ताशीर्ष पर बैठ गए हैं उन्होंने गद्दी को सुरक्षित कर लिया है। ऐसा कहने में संकोच नहीं हैlतभी तो सरकार के गलत नीतियों के   खिलाफ जो लोगआंदोलन कर रहे हैं उन्हें तरह-तरह से बदनाम करने की कोशिश की जाती रही है।देश में चल रहे किसानों के संबंध में कहना उचित लगता हैl आंदोलनकारियों को कभी खालिस्तानी,कभी टुकड़े-टुकड़े गैंगऔर कभी राष्ट्र विरोधी शब्दों से उन्हें संबोधित कर बदनाम करने की कोशिश की गईl सत्ताधारी इस बात को भूल गए कि जिस जनता ने कभी आंदोलन के बदौलत गद्दी पर बैठायी है,वह जनता गद्दी से उतार भी सकती हैlयही लोकतंत्र की शक्ति है l दुनिया में हुएआंदोलनों को देखकर लोकतंत्र की जनता ने कुछ सीख ली है।बड़े-बड़े तानाशाह जनता के समक्ष झूठे वादे कर गद्दी पर बैठ गए और जब यह मनमानी करने लगे तो जनता ने उन्हें सबक सिखाने के लिए गद्दी से उतार फेंका हैlयह सच है-भूख जब बगावत करती है तो बड़े-बड़े तानाशाहों के ताज मिनटों में उड़ जाते हैं।

         भारत के किसानआंदोलन ने इस बात को सच साबित कर दिखा दिया है कि सरकार पक्षी  नेताओं ने किसानआंदोलन को बदनाम करने की जो भी कोशिश की जनता ने उसे नकार दिया है और सरकार को अपने फैसले को,कानूनी फैसले को बदल कर जनता के शक्ति के सामने झुकना पड़ा हैl

 सरकार पक्षी अंधभक्त चाहे जो कुछ अपने बचाव में तर्क दें किंतु जनतंत्र की शक्ति महान शक्ति है उसने अपने ताकत को दिखा दिया है।

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