मुझे पता भी न चला था
पर वो चल रहा था
मैं देख ही रहा था
और वो ढल रहा था…
अस्त हो चुका था
सूर्य कल भी
फिर…,
अस्त होता चला गया
सूर्य आज भी…
उजाले के वक्त ही
अंधेरा हो गया…
घर आंगन यह जगत
उजाला हो न पाया
अंधेरा का छाया छाया…
यही मेरा ह्रदय है…?
ऐसा लगता है…!
दुनिया अस्त हो जाना
फिर अंधेरों में डूब जाना
मेरे साथ मिल जाना
फिर…,
मेरे ह्रदय को पहचान लेना ।
अगर…,
ऐसा नहीं होता तो…!
मेरे तन के संग संग मन भी
और मेरे मन के संग संग
प्यार भी…
संसार भी…
और…,
जीवन के आधार भी
उदय होता…!
मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क, नई दिल्ली
मो.नं.7982510985
16.12.2021