उम्र के एक पड़ाव पर बहुत सारी स्त्रियां अकेलापन महसूस करते अवसाद का भोग बन जाती है। आत्मविश्वास गिरता हुआ नज़र आता है, और कहीं कुछ अच्छा नहीं लगता ये फ़रियाद करती रहती है। कोई-कोई तो मन से इतनी कमज़ोर हो जाती है की मनोचिकित्सक की दवाईया लेना शुरू कर देती है।
दरअसल यही उम्र ही आपको आपसे मिलवाती है। पूरी ज़िंदगी परिवार और बच्चों के लिए खर्च कर ड़ाली, जो बची है उसे खुद के उपर खर्च करने का समय है। अपने लिए जीने के लम्हें है, उसे डिप्रेश होते उदासी में मत गंवाईये।
ये काल लगभग हर इंसान के जीवन में आता है। पुरुषों को भी ये परिस्थिति परेशान करती है। स्त्रियों को अक्सर मोनोपोज़ की वजह से इन सब चीज़ों का सामना करना पड़ता है।
पर हम सोचते है की पहले के ज़माने में भी औरतों को मोनोपोज़ आता था, उनको तो कभी अवसाद में डूबते नहीं देखा। इसकी भी वजह है, पहले के ज़माने में 4/5 बच्चें हुआ करते थे, संयुक्त परिवार हुआ करते थे और कामवाली या नौकरों की प्रथा गिने चुने घरों में होती थी। घर की औरतें ही घर का सारा काम करती थी, साथ में अगर खेती बाड़ी हो तो उस काम में भी औरतें मर्दों का हाथ बंटाती थी, तो पूरा दिन व्यस्त रहते कहाँ गुज़र जाता है उनको पता ही नहीं चलता होगा, तो अवसाद या मन:स्थिति की तरफ़ ध्यान ही नहीं जाता होगा।
आज हालात ये है की हमारे पास काम नहीं है, एक तो विभाजित छोटे परिवार इन मीन तीन लोग उपर से कामवाली कूक और बच्चों को संभालने वाली नैनी होती है, बच्चे बड़े हो जाते है अपनी ज़िंदगी में व्यस्त होते पर आते ही उड़ जाते है, फिर तो कोई काम करने को रहता ही नहीं। तो ज़ाहिर सी बात है खाली दिमाग शैतान का घर। शरीर की हर छोटी-बड़ी समस्या पर विचार करते उसी चिंता में डूबे रहते है और जो दिमाग सोचता है वही शरीर करता है।
तो जरूरत है खुद को व्यस्त रखने की, भले घरकाम ना हो पर हर इंसान को उपर वाले ने कोई न कोई हुनर दिया होता है, इस उम्र में अपनी कला को बाहर निकालीए, तराशिए और अपनी पसंद के हर वो काम करिए जो ज़िंदगी की आपाधापी में छूट गए है। कुछ नया सीखिए, सीखने की कोई उम्र नहीं होती। सुबह उठकर योगा, प्राणायाम कीजिए जिससे मन शांत रहेगा और तन में स्फूर्ति बनी रहेगी।
दोस्त बनाईये, किटी क्लब बनाकर एंजोय कीजिए, दोस्तों के साथ पिकनिक पर, मूवी देखने और शोपिंग का प्लान बनाईये। अगर पढ़ने या लिखने का शौक़ रखते है तो उस दिशा में आगे बढ़िए। सत्संग में जाईए, कुकिंग का शौक़ है तो नई-नई रैसिपी आज़माकर घर वालों को खिलाईये।
एक बात याद रखिए जीवन में घटने वाली एक भी घटना या परिस्थिति पर हमारा बस नहीं ना उसे सुलझाना हमारे हाथों में, जिस समय जो होना होता है वो होकर रहेगा, तो जो चीज़ हमारे हाथ में नहीं उसकी चिंता क्यूँ? सब समय और ईश्वर पर छोड़ दीजिए और खुद पर ध्यान दीजिए।
जीवन में अवसाद में डूबने के अलावा करनेको बहुत कुछ है। दिमाग और शरीर को व्यस्त रखेंगे तो न अवसाद या चिंता की तरफ़ ध्यान जाएगा न अकेलापन महसूस होगा। अवसाद को अलविदा कहते जीवन के हर एक पल को जश्न की तरह मनाते जिएंगे तभी उम्र के उस पड़ाव को आसानी से काट पाएंगे।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलूरु, कर्नाटक)