हे नाना-नानी तुम्हें प्रणाम!

जीवन जैसे एक कहानी,

अद्भुत उसमें नाना-नानी।

नाना वैज्ञानिक एग्रीकल्चर,

टफ बड़ा है घर का कल्चर।

पूरे घर पर उनका शासन,

उन्हें प्रिय शांति, अनुशासन।

दिन भर घर में रहता शोर,

उनके आते ही बात कुछ और।

छा जाता पिन-ड्रॉप साइलेंस,

वातावरण बन जाता कुछ टेंस।

देख उन्हें सब काँपते थरथर,

पीछे उनको सब कहते मेजर।

व्यक्तित्व उनका जैसे नारियल,

बाहर से सख्त भीतर कोमल।

सदा ही रखते सबका ध्यान,

है उनसे ही हम सबकी शान।

नानी पल में मन लेती जीत,

हर किसी से है उनकी प्रीत।

सरल मधुर उंनका व्यवहार,

हर कोई करता उनसे प्यार।

दिन भर करती काम तमाम,

तनिक न करतीं वो आराम।

पूरे मौहल्ले में उनका नाम,

भाग-भाग सब करते काम।

सबकी मदद को सदा तैयार,

हर किसी से करतीं प्यार।

दान-पुण्य में उनका विश्वास,

भजन-कीर्तन और उपवास।

हर विषय का है उनको ज्ञान,

विनम्र, सुशील और विद्वान।

दो पहियों की यह गाड़ी,

करते जिस पर हम सवारी।

जोड़ी लगे यह मनभावन,

यूँ ही बना रहे तन-मन।

बना रहे यह स्नेह अशेष,

सुखी रहें अंजना-महेश।

हरे विधाता हर एक घाम,

हे नाना-नानी तुम्हें प्रणाम।

—अगस्त्य औरव त्यागी  

वेल्लोर―632 014

(तमिलनाडू)