ईर्ष्या

हर घर में हूँ रहती

सबके दिलों में हूँ बसती

जलन, विद्वेष, मत्सर आदि

स्वरुपों में हूँ दिखती

मेरे रहते न पाते कोई तरक्की

मेरे चलते न मिलती कोई कामयाबी

आपस में दरार हूँ पैदा करती

लोगों के दिलों में जलन हूँ भरती

मेरे चपेट में इंसान है आते

मेरे चक्कर में मान-सम्मान है गवाँते

दम हूँ इतना भरती

दुनिया उजाड़ने की ताकत हूँ रखती

भाईयों में विद्वेष बढ़ाया

कुरुक्षेत्र में युद्ध है करवाया

माताओं में मत्सर पैदा किया

श्रीराम को वनवास भिजवाया

इंसान ‘ईर्ष्या ’ नाम से पुकारते

मुझे अपनाकर पाँव पर कुल्हाड़ी मारते

सारी मर्यादा मैं ही तुड़वाती

अवनति का मार्ग मैं ही दिखाती

मेरे किस्से है बहुत सारे

सबको सीख हूँ देती ढेर सारे

जिसने मुझे है त्यागा

उसी ने जीवन में सुकून है पाया…..

 *संध्या जाधव, हुबली कर्नाटक*