मैं और चांद

दूर बैठा चांद

जो तकता है 

तन्हाई मेरी,

मैं भी नजरों से

कह देती हूं

सब हाल दिल का उसे,

वो समझता है

बड़े जीवन से आसमान पर

अकेले रहने का गम।

लाखों तारों के 

बीच होकर भी

खामोशी से तन्हा ही

गुजारनी है रात उसे,

वो भी ढूंढता है

कोई तन्हा मुसाफिर

मेरी तरह,

जो समझ सके

उसके एकाकीपन को,

और दे सके उसे

शांतिभारी सोहबत;

तभी तो दूर होकर भी

दोस्ती गहरी है

मेरी और उस चांद की,

रातों बतियातें हैं दोनों

खामोशी से।

ऋद्धिका आचार्य।

बीकानेर।