किसान

रात गुजारता ठिठुरती ठंड में

 भरने पेट  लगा रहता जद्दोजहद में 

तपती धूप में चीर धरा को

 मैले कपड़ों में 

शुद्ध अन्न उगाता

 पशु -पक्षियों का रक्षक

 पसीने से सींचता भू को

 उगाता अन्न है 

कभी सूखा, बाढ़, तूफान करते बेहाल 

 पर ये हठी उठ जाता हर बार है 

मिट्टी में उगाता सोना है

 ना भय, ना आलस

 लगा रहता हर मौसम  में 

थामें रखता अर्थव्यवस्था को

 रखता भरे अन्र भंडार हमारे 

देख हाल किसान का 

मन बेचैन होता सीमा का 

भला बिन किसान के

 देश तरक्की करेगा कैसे

 नमन मेरा धरा लाल को 

अपने संग देश का भरता पेट 

करो शुक्रिया अदा मिलकर

 जिसके अन्न पर  तुम जिए

 खाकर अन्न पले -बढ़े 

तभी लगा नारा है 

जय जवान जय किसान

 सीमा रंगा इन्द्रा

 हरियाणा

7747932024