किसान

हाथ की लकीरों से ,

लड़ जाते है।

जब बंजर धरती पे,

अपनी मेहनत से,

हल से,

लकीरें खींच जाते हैं।

हाथ की लकीरों से,

लड़ जाते हैं।

कभी स्थितियों से,

कभी परिस्थितियों से,

दो- दो हाथ करते हैं।

वो पालते हैं

पेट सबके,

खुद आधा पेट भर के,

मुनाफाखोरी के आगे,

हाथ -पैर जोड़ते हैं।

हाथ की लकीरों से,

लड़ जाते हैं।

जो जीवन को, 

जीवन देते हैं

सबको अपनी, 

मेहनत से,

ऊचाईयां देते हैं।

उसकी महानता को,

अगर समझे होते।

कर्ज में डूबे किसान,

फांसी पर यूं न चढ़े होते।

दीजिए सम्मान,

उन्हें…

जिस के वो हकदार हैं।

वह धरा पर,

जीवन धरा के प्राण हैं।

डॉक्टर, इंजीनियर,

 …..बनने से पहले,

जीवन देने वाले हैं।

अमृत सदृश रोटी 

हर रोज देने वाले हैं।।

प्रीति शर्मा  “असीम”

हिमाचल प्रदेश