आपकी बात दिल में घर कर गई है,
आज मन ही मन हमें भर कर गई है।
प्यार से जो भी कहा था आपसे जी,
राज की बात दिल को तर कर गई है।
अब हमें आवाज देने की खुशी में,
प्रीति बरवश ही पुरअसर कर गई है।
प्रेम का गीत इतना मधुर बन जाए,
बस यही बात दिल में डरकर गई है।
बहुत सोच कर अब लें फौरन अमल में,
साथ चलने की इच्छा चढ़कर गई है।
आइए आपपर जान निछावर करूँ,
आपसे ही मुहब्बत बसरकर गई है।
अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०