वीर बेमिसाल है

काल  के  कपाल  पर,   विश्व  के  मजाल  पर,

नित   नया   लिख   रहा,   भारतीय   लाल  है। 

काँप  रहा  शत्रु  जहाँ,   सीमा  पर  शक्त  वहाँ,

बनके    प्रहरी   खड़ा,     वीर    बेमिसाल   है। 

वज्र  सी  भुजाएं  लिए, सिंह  सा  दहाड़ें  लिए,

अग्नि  से  नयन  भरा,   समर   का  काल   है। 

बिना रुके,  बिना थके, बिना किसी  मारग के,

ज़लज़ला  सा  जा  रहा,   साहसी  कमाल  है। 

अग्नि  पथ  से   जूझता,  लहर  की  रौ मोड़ता,

विश्वशान्ति  पर   चला,  हाथ   खड्ग-ढाल   है। 

त्याग  की है  रीति वहाँ,  शहीदी है  प्रीति जहाँ,

स्वदेश   के   लिए   हर,   रक्त   में   उबाल   है। 

जना जिनको  ये धरा,   किसी से  वो नहीं डरा,

ग्रन्थ   पत्र   में   जिनकी,  वीरता   मिसाल   है।

 कर्म  पर  खड़ा  है  वो,   धर्म  पर  अड़ा  है  वो,

गुमान  है  तिरंगे   का,   भारती  का  भाल   है। 

– आर. आर. झा (रंजन)

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