मत सोच हे पार्थ!

   नया साल आने को है,

   बदल रहा है यह साल,

   क्या खोया, क्या पाया, 

   ज्यादा मत सोच हे पार्थ!

   तू भूल मत, युद्ध में खड़ा है। 

   उठा धनुष भेद डाल, 

   सामने है, संघर्षों का पहाड़।

   ज्यादा मत सोच हे पार्थ? 

   बदल डालो अपनी  

   सभी पुरानी आदतें।

   जो बनी हुई हैं,बेवजह 

   तुम्हारी पथ की रुकावटें । 

   नए साल आने को हैं, 

   अपनी तस्वीर बदल दे हे पार्थ!

——- समराज चौहान। 

    छात्र ,असम विश्वविद्यालय 

कार्बी आंग्लांग,असम।

    दूरभाष :-६००००५९२८२