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कुछ लोगों को ईश्वर ने नैसर्गिक सुंदरता प्रदान की है l उन्हें खूबसूरत दिखने के लिए किसी दिखावे की जरूरत नहीं होती l और ना ही वो दिखावा जैसा कुछ करते ही हैं l बल्कि जिस रूप में ईश्वर ने उन्हें धरती पर भेजा है l वो उसी रूप में रहना पसंद करतें हैं l लेकिन, इसके विपरीत भी कुछ लोग होते हैं l जो जन्म से लेकर अपने अंतिम समय तक दिखावा में ही जीते हैं l किसी शादी में जायेंगी l तो घंटों आईने के सामने खुद को निहारेंगीं l कि मैं कैसी लग रही हूँ l कौन सी साड़ी पहनूँ की मेरी सहेलियाँ- शुभेक्षी तक मुझे लगातार निहारें l वो मेरी साड़ियों और मेकअप सेंस की तारीफ करते ना थकें l पार्टी की मैं शान बन जाऊँ l कौन सा लिपिस्टिक या काजल लगाना है l उसको चुनने में घंटों
लगा देंगीं l इन नारियों को कंवेंश करना बड़ी टेढ़ी खीर होती है l साडी़ की दूकान में जायेंगी l तो साड़ी वाला दूकानदार साड़ी दिखाते – दिखाते परेशान हो जायेगा l लेकिन, इनको साड़ी पसंद नहीं करवा पायेगा l इनको साड़ी पसंद इसलिए भी नहीं आती l क्योंकि इनको खुद पता नहीं होता कि इनको दरअसल लेना क्या है l बेचारा पति भी एक दूकान से दुसरे दूकानदार के पास घूमते हुए भीतर ही भीतर कुढ़ता रहता है l अब कौन पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर ले l दूकानदार भी दिखाते- दिखाते जब थक जाता है l तो सामने से हाथ जोड़ लेता है l नहीं बहन जी बस अब और हमारी परीक्षा मत लो l बस अब और स्टाॅक हमारी दूकान में नहीं है l इनको हमेशा एंटीक पीस चाहिए l ऐसी साड़ी जिसे आजतक किसी ने नहीं पहना हो l धरती पर ऐसी साड़ी केवल और केवल उनके पास ही होनी चाहिए l जैसे शाहजहाँ ने सोचा था l कि दुनिया में केवल एक ही ताजमहल होना चाहिए l दूसरा नहीं l किंवदंती तो यह भी है l कि शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाने के बाद उसके कारीगरों के हाथ काट दिये थे l इनकी भी मंशा ऐसी ही कुछ होती है l लेकिन, साड़ी बुनकरों को खुश इसलिए भी होना चाहिए कि अभी मुगल कालीन दौर नहीं है l वरना कितने कारीगरों का हाथ अब तक काटा जा चुका होता l पता नहीं ऐसी ख्वाहिशें
लोगों के दिलों में पलती कैसे हैं ? कितनी क्रूर सोच है l कि जैसा मकान या जैसी कार या जैसी फलाना – ढिमकाना चीज हमारे पास है l वैसी चीज किसी और के पास नहीं होनी चाहिए ! नहीं होनी चाहिए मतलब l जो अच्छा हो l जो सबसे सुंदर हो l वो हमारे पास ही हो l एक तरह से ऐसा पुराने समय में ज्यादा होता था राजे – रजवाड़ों के समय में l कुँआ उनका होता था l तालाब उनका होता था l खेत भी उनका होता था l खेत में लगी फसल भी उनकी ही होती थी l मुझे लगता है समाजवाद की स्थापना में ऐसी सोच सबसे बड़ी रूकावट है l भला हो उन अंग्रेजों का जिसने भारत में आकर कुछ समय तक शासन व्यवस्था करके ये बताया कि राज शाही के अलावे लोकतांत्रिक और उदारवादी मूल्य भी होते हैं l जिससे दमनकारी मुगलिया सोच रखने वाले और जमींदारों/ जागीरदोरों की नींद खुली l अब एक श्रीमान् एक दिन मुझसे मिले l और बोले कि मेरा एक मित्र का लड़का है l जिसने अपनी बुलेट में ढ़ाई लाख का साइलेंसर लगाया है l मैं चौंका ढाई लाख का साइलेंसर ! क्यों ? अरे भाई क्यों क्या ? तीन लाख की बुलेट में ढाई लाख का साइलेंसर इसलिए लगाया है l ताकि दो किलोमीटर दूर से उसकी बुलेट की आवाज़ लोग सुन सके l लगा अपना माथा ठोंक लूँ l भाई हम पहले ही वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण से पीड़ित हैं l अब ध्वनि प्रदूषण करने के लिए लोग ढ़ाई लाख रुपये तक खर्च कर रहें हैं ! और, अपनी पहचान दर्ज करवाने के लिए आपके बगल से अपनी बुलेट की थरथराहट गूँजवाते हैं l खैर, देखने -दिखानी की परंपरा हमारी पुरानी रही है l आपके पड़ोस में कोई नई गाड़ी दुपहिया – चारपहिया ले आता है l तो
पत्नी तुनक जाती है l हमें भी अपना स्टेटस मैनेज करना चाहिए l आखिर , मिसेज शर्मा को भी तो पता चले की हमारा स्टेटस भी उनसे कम नहीं है l अगर उन्होंने रोल्स- राॅयस ली है l तो कम- से कम तुम भी मर्सिडीज ले ही सकते हो l आपका फोन अगर पुराने माॅडल का है l तो पत्नी तुरंत याद दिला देती है l कि आदमी को लेटेस्ट टेक्नोलॉजी से अपडेट होते रहना चाहिए l ताकि हम पीछे ना रह जाएँ l वैसे भी डिजीटल इंडिया चल रहा है l पेट भले ही खाली हो l लेकिन, जेब में मोबाइल जरूर होनी चाहिए l खैर, आपकी औकात भले ही स्कूटर खरीदने की ना हो l लेकिन, आपके पड़ोसी में इतनी ताकत है l कि वो आपको कार जरूर खरीदवा देगा l कुछ जगहों पर ये सही भी होता है l जैसे हमारा पड़ोसी मुल्क जो बात – बे – बात असलहे और मिसाइलों की धमकी देता है l इसलिए, हमें भी इधर अपना रक्षा तंत्र पुरी तरह से मजबूत रखना होगा l आखिर, सवाल देश की सुरक्षा का जो है l लेकिन, केवल दिखावे के लिए आप क्रेडिट पर कार और मोबाइल मत ले लीजिए l क्योंकि ई. एम. पर ना तो आदमी टिक पाता है l और ना ही रिश्ते l
महेश कुमार केशरी
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