जाने वो कैसे लोग थे

न जाने वो कैसे लोग थे

जो खुद आँसू पीकर दूसरे के

चेहरे पर हँसी ले आते थे।

न जाने वो कैसे लोग थे

जो खुद भूखा रहकर दूसरे 

का पेट भर देते थे।

न जाने वो कैसे लोग थे

जो खुद हार को गले लगा

दूसरे के सिर जीत का सेहरा बांध देते थे।

न जाने वो कैसे लोग थे

जो खुद की जान से पहले

दूसरे का सोचते थे ।

न जाने वो कैसे लोग थे

जो अनजाने में भी किसी का 

दिल न दुःखे ये सोचा करते थे।

न जाने वो कैसे लोग थे

जो बेसहारा का सहारा बनते थे।

न जाने वो कैसे लोग थे जो 

गिरते को थाम लेते थे उसकी ताकत बन।

न जाने वो कैसे लोग थे 

जिनके लिए प्रेम ही दुनिया

इंसानियत ही कर्म और 

रिश्ते ही पहचान होते थे।

न जाने वो कैसे लोग थे

जिन्हें फरेब से नफरत और

 सच्चाई से ही प्यार था।

न जाने वो कैसे लोग थे

जो सही मायनों में भले भगवान 

न सही पर इंसान तो थे।

न जाने वो कैसे लोग थे

न जाने वो कैसे लोग थे

जो ढूँढे नहीं मिलते आज

बनावट से भरी इस दुनिया

जहाँ खून सर्द जज़्बात पत्थर हो चुके हैं

सिर पर छत तो दूर पैरों तले 

से ज़मीन भी खींच लेते हैं

नफरत के शूल भेदते दिलों का

न आपसी तालमेल न सौहार्द

बस खुद से खुद के लिए जीता 

और मरता है इंसान 

इंसान भी कहें ये भी एक सवाल 

जो बस मद में चूर 

रहता मस्त अपनी ही बनाई 

अपनी ही रची दुनिया में अपने ही 

नियम अपने ही कायदे

देना नहीं बस आता है छीनना

चाहे हो हँसी, खुशी, सुख, सुकून,नाम, 

पैसा , इज़्ज़त या ज़िन्दगी

न जाने वो कैसे लोग थे

बिल्कुल जुदा बिल्कुल अलग

न जाने वो कैसे लोग थे

कौन से लोग थे इस बनावट, छल,कपट,

निष्ठुरता से परेपवित्र, पुण्य, दयालु, सहृदय

…..मीनाक्षी सुकुमारन

         नोएडा