मधुर कल्पना

कुछ सृजन करूं,कुछ सृजन करूं।

समुंदर अंजुर भरूं,कुछ अर्जन करूं।

भाव अंबर भरूं,धरा पर उकेरती चलूं।

अमृतमयी प्रेम गागर,यहां-वहां धरूं। 

व्यथित हृदयों की,वेदना दूर करूं।

चांदनी सा,जग में उजियारा भरूं।

उलझते तड़पते,प्राण ऊर्जित करूं।

ढहती कगार पर,बहते वृक्ष रोक लूं।

माया मोह पाश से,अब कुछ दूर हूं।

स्वभावगत मजबूरियों,से मजबूर हूं।

देह बर्फ बन,प्रतिपल पिघलती हूं।

सहज सत्य सी,रात दिन जलती रहूं।

लहरों सा उल्लास,मनों में चाहती हूं।

जीते हुए नहीं,मरना ऐसे चाहती हूं।

जीवन मधुर कल्पना, बंधु चाहती हूं।

शून्य में तैरते प्राणअवतरण चाहती हूं।

वीनस जैन

शाहजहांपुर

उत्तर प्रदेश