आभासी पटल पर इदानीन्तनी बंदर बाँट की तरह पुरस्कार/ सम्मान प्रदान की जा रहे हैं। या यूँ कहें कि इदानीं पुरस्कारों व सम्मानों का बाजारीकरण हो गया है। इस विषय पर मन्तव्य प्रकट करने से पूर्व भारतवर्ष में दिए जाने वाले प्रमुख पुरस्कारों/सम्मानों पर चर्चा अपेक्षित प्रतीत होती है। भारतवर्ष में सम्मान, पुरस्कार तथा उपाधि से अलंकृत करने की परंपरा सदियों पुरानी है। प्राचीन भारत में महामहोपाध्याय यह उपाधि राजाओं द्वारा प्रदान की जाती थी। तत्पश्चात् 1947 से पहले यह उपाधि ब्रिटिश सरकार द्वारा दी जाती थी। अधुना यह उपाधि विश्वविख्यात विश्वविद्यालयों द्वारा नामचीन हस्तियों को शिक्षा व साहित्य के क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय योगदान के लिए दी जाती है। अद्य भी भारतवर्ष में विभिन्न क्षेत्रों में प्रदत्त विशेष उल्लेखनीय कार्य हेतु विविध प्रकार के पुरस्कार/सम्मान दिए जाते हैं। कतिपय प्रमुख पुरस्कारों का नाम उल्लेख करना समीचीन प्रतीत होता है यथा-
1. नागरिक पुरस्कार- भारत रत्न, पद्म पुरस्कार, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्मश्री।
2. सैन्य पुरस्कार- परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र, अशोक चक्र, कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र।
3. चिकित्सा पुरस्कार- डॉ वी सी राय पुरस्कार।
4. नेतृत्व पुरस्कार- गांधी शांति पुरस्कार, इंदिरा गांधी पुरस्कार।
5. साहित्य पुरस्कार- ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, भाषा सम्मान, सरस्वती सम्मान, व्यास सम्मान, गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान, साहित्य अकादमी फेलोशिप, राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, मूर्ति देवी पुरस्कार।
6. खेल व साहसिक पुरस्कार- मेजर ध्यानचंद पुरस्कार, अर्जुन अवार्ड, द्रोणाचार्य अवार्ड, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार ।
7.सिनेमा और कला- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, फिल्म फेयर, दादा साहब फाल्के पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी सम्मान।
8. विशेष पुरस्कार- पुलिस पुरस्कार, वीरता पुरस्कार, सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान पुरस्कार, महिला पुरस्कार, बाल पुरस्कार, राष्ट्रीय बाल श्री सम्मान।
भारत सरकार द्वारा कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी दिए जाते हैं जैसे- राष्ट्रीय गांधी शान्ति पुरस्कार, इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार, रवीन्द्र नाथ टैगोर अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार, जवाहरलाल नेहरू अंतरराष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, कलिंग पुरस्कार।
भारत सरकार के साथ ही हर राज्य की सरकारें भी अनेक प्रकार के पुरस्कार/सम्मान प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त देश में स्थापित अकादमियों, संस्थाओं, संस्थानों, विभागों, मंत्रालयों द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कारों की अतिदीर्घ फेहरिस्त हैं। इसके अतिरिक्त राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित समाजसेवी संस्थाओं द्वारा भी अनेकानेक पुरस्कार/सम्मान दिए जाते हैं। सबका उल्लेख करना संभव नहीं है। हमने स्थलीपुलकन्याय से कतिपय पुरस्कारों का उल्लेख किया है। ये पुरस्कार योग्यता एवं कार्य क्षमता केआधार पर दिए जाते हैं। किन्तु आज सोशल मीडिया पर ऑनलाइन पुरस्कारों की जो बाढ़ आई है उसमें गुणवत्ता, उत्कृष्टता व योग्यता का कोई स्थान नहीं है।
शब्दकोश के अनुसार पुरस्कार का अर्थ होता है- 1. किसी कार्य हेतु सम्मान सहित दिया जाने वाला धन या द्रव्य, 2. वह वस्तु या द्रव्य जो किसी को खुश होकर प्रदान किया जाए, 3. उपहार, भेंट, 4. आगे करने की प्रक्रिया, आदर।
पुरस्कार के उपर्युक्त अर्थानुसार ऑनलाइन पटल पर जो पुरस्कार/सम्मान दिए जा रहे हैं उसे केवल आगे बढ़ाने की प्रक्रिया या प्रोत्साहन हेतु दिया जाने वाला पुरस्कार कह सकते हैं। पिछले कई वर्षों से ऑनलाइन पटल पर साहित्यिक मंचों व संस्थाओं की संख्या असंख्य हो गई है जिनकी गणना करना भी दुष्कर कार्य हैं। कुछ पटल तो पंजीकृत हैं और कुछ तो व्यक्ति विशेष के द्वारा अपने को महिमामंडित करने के लिए बनाए जाते हैं और वह पटल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाते हैं और उनके अनुयायी अनेक कवि बन जाते हैं। इनमें से अनेक मंच राष्ट्रीय के अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय स्तर के भी हैं। ऑनलाइन पटल पर जूम एप, फेसबुक, व्हाट्सएप, गूगल मीट, स्ट्रीम यार्ड आदि पर हर त्यौहार व पर्वों पर, महापुरुषों की जयंती, राष्ट्रीय पर्वो, महाकवियों की जयंती आदि पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। आयोजन के उपरांत बिना गुणवत्ता व शुद्धता की परीक्षा किए बिना ही चने एवं रेवड़ियों की भांति विभिन्न सम्मानों व पुरस्कारों से सभी प्रतिभागियों को अलंकृत किया जाता है। सम्मान/पुरस्कार प्राप्त करने से हर प्राणी आनंदित होता है लेकिन इन प्रमाण पत्र रूपी आभूषण को प्रदान करने में रचना के मापदंड की परीक्षा के बिना ही नवोदित रचनाकारों की प्रस्तुति को ,स्वान्त: सुखाय सृजनधर्मियों तथा वरिष्ठ रचनाकारों, जो साहित्य जगत में कवि मंचों पर स्थान पाने में सफल नहीं हुए, गृहस्थ गृहणियाँ जो लिखती तो रही होगी लेकिन उन्हें कभी अवसर नहीं मिला- इन सभी को एक समान पारितोषिक प्रदान किया जाता है। यह बात बिल्कुल सही है कि पुरस्कार/सम्मान प्राप्ति से आत्मबल बढ़ता है सिसृक्षा शक्ति बलवती होती है। किंतु ऑनलाइन प्रक्रिया में श्रेष्ठ रचनाकार, सामान्य रचनाकार व नवोदित रचनाकार सभी एक ही तराजू में तौले जा रहे हैं।
यह भी सत्य है कि आभासी दुनिया या ऑनलाइन पटल से बहुत से कवियों को मंच भी उपलब्ध हो रहे हैं जो लाबी, विचारधारा, वरिष्ठता, दल व गुरु विशेष के कारण मंचासीन नहीं हो पाते हैं। ऑनलाइन पटल से जुड़े कुछ कविगण इन प्रमाणपत्रों की हार्ड प्रति बाजार से निकलवाकर अपने घरों को अपनी उपलब्धियों से सुसज्जित कर रहे हैं। हिन्दी का इन ऑनलाइन कार्यक्रमों से प्रसार तो विपुल हो रहा लेकिन स्तरीय साहित्य का सृजन नहीं हो रहा है।
पहले जमाने में यह धारणा दी थी कि पुरस्कार/सम्मान प्राप्ति से व्यक्ति विशेष में अहंकार व्याप्त हो जाता है और वह अध्ययन व सृजन पथ से भटक जाता है। अतः पारितोषिक दीर्घावधि के पश्चात् उम्र के अर्ध पड़ाव पर ही प्राप्त होता था। किंतु अद्य उम्र की सीमा कोई मायने नहीं रखती है। लेखन क्षेत्र से जुड़े लोगों का ऐसा भी कहना है कि पुरस्कार के साथ धनराशि भी प्रदान की जाए जिससे उनकी कृतियों का प्रकाशन भी हो सकें। आज अधिकांशतया कृतियों का प्रकाशन स्ववित्त से किया जाता हैं। अथवा साझा संकलन में रचनाएँ प्रकाशित हो रही है क्योंकि इन संकलनों में अल्पधन राशि के व्यय रचनाएँ छप जाती हैं।
आज राष्ट्रीय के अतिरिक्त जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पटल सृजित हो गए हैं वे जो गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन, गिनीज बुक रिकॉर्ड आदि प्राप्त कर रहे हैं और सहभागिता करने वाले सभी सृजनधर्मियों को भी प्रदान कर रहे हैं। ऐसे कार्यक्रमों में सहभागिता करने वाले नवोदित कलाकार अतिशीघ्र राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय कवि की श्रेणी में स्थान पा जा रहे हैं। चाहे रचना विशुद्ध हो या ना हो।
वर्तमान में ऑनलाइन कवि सम्मेलन में एक विशेष उपक्रम किया जा रहा है। यह उपक्रम स्तुत्य भी है। अधुना आयोजकगण कवि सम्मेलन विशिष्ट व अस्पृष्ट विषयों पर भी करा रहे हैं यथा- भारत की प्रथम महिला भारती के लाल (स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान देने वाले कर्मवीरों पर आधृत), अखंड काव्यायन (इस कवि समवाय में हिंदी साहित्य के आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक के कवियों पर रचनाएं पढ़ी गई)। ,परमवीर चक्र विजेता योद्धा, भारत रत्न प्राप्त देशनायक, भारत को जाने इस कार्यक्रम में भारत के 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेशों पर दोहे और चौपाई के माध्यम से भारतवर्ष की खूबसूरत झांकी को प्रस्तुत किया गया।
इन आयोजनों के आयोजक कर्त्ता साझा संकलन भी प्रकाशित करते हैं। फिर प्रकाशन के लिए धनराशि कभी पूर्व और कभी पश्चात् में निर्धारित कर देते हैं। नवोदित रचनाकार के साथ अन्य सभी साहित्यकार भी धनराशि का भुगतान कर संकलन प्राप्त कर लेते हैं। उदीयमान रचनाकार तो कई समूहों में सम्मिलित हो जाते हैं और उनके पास प्रकाशित साझा संकलनों की बड़ी संख्या एकत्रित हो जाती हैं। ये नवोदित सृजनधर्मी अपने को कवि की श्रेणी में परिभाषित कर फूले नहीं समाते हैं। प्रश्न यह है कि इन संकलनों के पाठक गण कितने हैं?
इस आभासी आयोजनों के निष्पादन व प्रकाशन से हिंदी भाषा फल-फूल रही है किन्तु मानक लेखन का इसमें नितांत अभाव है। आप अपने संकलनों को देखकर स्वयं फूले समाये और जो साहित्य का पारखी न हो उसे दिखाकर गौरवान्वित हो किंतु इसमें प्रकाशित सभी रचनाएँ उत्तम नहीं कही जा सकती हैं। इन आयोजनों में सभी को पुरस्कार/सम्मान प्रदान कर सभी का उत्साहवर्धन किया जा रहा है जिससे निकट भविष्य में आपकी लेखन कला निखर सकें और आप इस कला में दक्ष हो सकें। इन प्रदत्त पुरस्कारों को कितनी महत्ता व मान्यता मिलेगी, यह भविष्य तय करेगा।
वर्तमान में सम्मान/पुरस्कारों का वितरण शुल्क आहरण करके भी किया जा रहा हैं। इन पुरस्कारों को प्राप्त करने के लिए आपकी योग्यता व कुशलता का आकलन नहीं किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर प्रचार हेतु उसका पोस्टर व लिंक भेजा जाता है। यदि आप लिंक ओपन करते (खोलते) हैं तो आपसे धनराशि की मांग की जाती है। यह धनराशि पंजीकरण अथवा किसी अन्य रूप में न्यूनतम से अधिकतम हर समूह की पृथक्-पृथक् होती है। अनेक महत्वाकांक्षा की आकांक्षा रखने वाले हर क्षेत्र में लोग इनमें सहभागिता कर पुरस्कार/सम्मान का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेते हैं। अनेक लोग इनके बिछाए गए नेटवर्क रूपी मकड़जाल में फँसते व फैलते जा रहे हैं। ऐसे ऑनलाइन पटलों का सोशल मीडिया पर प्राकट्य व तिरोधान भी होता रहता है।
उपर्युक्त विवेचन के पश्चात् ऑनलाइन आयोजनों के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि इन आयोजनों ने पुरस्कारों/सम्मानों की महत्ता को क्षीण कर दिया है। आज हर कलमकार के पास भूयसी पुरस्कार/सम्मान प्राप्त प्रमाण पत्रों की संख्या होगी। इन सम्मान/पुरस्कार प्राप्त प्रमाण पत्रों का आत्म संतुष्टि व आत्म प्रशंसा के अतिरिक्त कोई मूल्य नहीं है। ये सम्मान/पुरस्कार साहित्यिक प्रदूषण को प्रसृत कर रहे हैं जिनसे निजात पा सकना कुछ दिनों में दुष्कर हो जाएगा।
*डा. वत्सला*
*सह- आचार्य, संस्कृत*