प्यार ही बोया था उन्होंने

तोहफे में दे हमने खामोशी, हृदयहीन उन्हें बना दिया।

व्यवहार में कड़कपन,पर खामोशी जामा पहना दिया। 

सच्चाई तो यही है वीणा,पर आज झूठ ने जगह बनाई, 

हर कदम शर्तों पर चला कर, उन्हें सौदागर बना दिया।

खुशियां गुम हो गई ,दिनों दिन अपनों का कहर बढ़ा। 

स्वार्थ ने, आज खून के रिश्तो को बेअसर बना दिया।

मूरत भी नहीं हटती मंदिर से जब तक खंडित ना हो,

जख्म थे गहरे ना दिखा पाया वो ,राह से हटा दिया। 

आत्मसम्मान का नाश किया,स्वार्थ जब गहरा हुआ।

दूषित कर मन को ,कर्तव्य पालन विमुख बना दिया।

असत्य जहर पिला,रोक रहे सब ही निज उन्नति को।

मतलबी  छांव तले रह ,जीने को मजबूर बना दिया।

आत्मा की पुकार सुनते,तो शायद गुनाह से बच जाते।

सुलझी हुई डोर थी, नादां ने ज्यादा ही उलझा दिया।

प्यार ही बोया था उन्होंने, पर सींचा हमने स्वार्थ से।

दलदल में फंसते गए ,और मार्ग कंटक बना दिया।

वीणा वैष्णव रागिनी

     राजसमंद    राजस्थान