गंगा

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कठिन तपस्या कीन्ह भगीरथ पूज्य धरा पर लानी है गंगा

जप तप करते पुरखों के हित धरनी पर अब आनी है गंगा

धरती पर चलिबे को आतुर बात हृदय से बता गयीं   गंगा

वेग हमारो धरा पर रोकै  ऐसो उपाय बता   गयीं गंगा ।।

चिंता मग्न  भगीरथ फिर से जप तप से माने हैं शम्भू

गंग का वेग धरा पे न आये ऐसो   उपाय किये हैं शम्भू

शीश जटा पर धारण करिके गंग को संग बिठा लिए शम्भू

व्याकुल गंग विलोकत ज्यूँ ही एक जटा से बहा गए शम्भू ।।

ज्यूँ ही गंग धरा पर आयीं निर्मल जल की धार बही है

शस्य श्यामला धरिणी के हित पापों का फिर भार सही हैं

जन जन के पापों को हरती पुरखों को नित तार रहीं हैं

पुण्य सलिल  बन बहती रहती ऋषियों ने ये बात कही है।।

                              रमानाथ शुक्ल “रमण”

                                        कानपुर