अहमियत कब कम हो जाए,कोई भी कह नहीं सकता।
सर्दी में जो ताप अच्छा लगता,गर्मी में सह नहीं सकता।
बिन मांगे जो मिल जाए, अक्सर कीमत कम हो जाती।
कमी रहने दो थोड़ी ,चाह कर भी वो कह नहीं सकता।
ना रखो अगर ताल-मेल, तो पुराना दौर लोट ही आता।
सह लेता है बहुत,पर वक्त से पहले वो ढह नहीं सकता।
माफी मांग कर जुड़ रहे हैं रिश्ते,ज्यादा चल नहीं सकते।
अहमियत जो समझा, औपचारिकता सह नहीं सकता।
वक्त रहते जो समझे अहमियत, वो शिद्दत से निभाएंगे।
गैर आएंगे जिंदगी में ,पर खाली कोना कह नहीं सकता।
खोने वाले नादान है वीणा,कीमत तो पाने वाले से पूछो।
होंगे सब ही करीब उसके,फिर वो तन्हा रह नहीं सकता।
पलकों पर बिठाया उसे,उसके सिवा कोई ना था उसका।
गैर दिए जख्मों को सह रहा, अब कुछ कह नहीं सकता।
वीणा वैष्णव रागिनी
राजसमंद राजस्थान