टिफिन

  “एक तो इतनी देर से आई .. ऊपर से गेट भी खुला छोड़ गयी महारानी.. अब इतनी तेज धूप में बंद करके आओ” अपनी बाई पर गुस्से में बड़बडाती हुई गेट बंद करने गयी तो भरी दुपहरी में दोनों हाथों में टिफिन लटकाये तेज चाल से जाती अम्मा जी दिखी ..रोक कर बरामदे में बिठाया.. पंखा चला कर पानी देने के बाद मैं भी उनकी कुर्सी के पास अपनी कुर्सी डाल कर बैठ गयी।

  ” अम्मा जी ! इतनी धूप में कहाँ जा रही हो? .””दुकान पर खाना देने..और कहाँ “

  अम्मा जी के घर और दोनों लड़कों की दुकान की दूरी करीब डेढ़ किलो मीटर .. यह तो मुझे पता था पर इतनी धूप में अम्माजी ही क्यों?”सहायक नही है दुकान पर  ..”

  “हैं ..क्यों नही है?  दो- दो है दोनों की दुकान पर ” तपती धूप के कारण रोष में भरी अम्मा जी बोली

“घर पर और कोई नही है टिफिन पहुँचाने के लिए?”

“है ..तीन पोते है” ।”फिर आप ही क्यों जाती हो?”

“बिठा कर कौन खिलाता है आज कल?घर का काम न सही तो यही सही.. बहुओं ने कह रखा है दोनों टाइम का खाना तब मिलेगा जब टिफिन दुकान पर देने जाओगी।”

“लड़के कुछ नही कहते बहुओं को?”

“अरे नालायक है दोनों .. वही कह ले तो मैं इतनी धूप में क्यों झुलसू?”

  “छाता ले कर चला करों ना ..रिक्शा कर लेती अम्माजी!”

  “अरे यहाँ खाने के लाले पड़े हुए है तुझे छाते और रिक्शे की पड़ी है.. अपने पुराने सूट देती है उन्हें ठीक करके पहनती हूँ ” डपटती हुई बोली अम्माजी  ” अम्मा जी!आपके पति आपके नाम..” मैं बोली।

“वो तो सब मेरे नाम करने वाले थे पर एक दिन पहले उनका एक्सीडेन्ट हो गया..दसवीं पास हूँ मैं पर लड़कों ने वकील से मिल कर मुझसे कागजों पर साइन करवा लिये.. बेटे थे इसलिए शक करने की वजह भी नही थी मेरे पास”अम्माजी मेरी बात काट कर बोली।   “दस साल हो गये उन्हें गये हुए .. उनके सामने बहुत मौज थी मेरी ” यादों में खो गयी अम्माजी

” पचपन साल पहले मुझे ब्याह कर लाये थे..मैं सुबह घर के चबूतरे पर झाड़ू लगा रही थी ..एक आदमी मुझे देखता हुआ चला गया.. बाद में पता चला वो तो मेरे ससुर थे ..मुहल्ले के किसी बिरादरी वाले के यहाँ आये थे.. टहलने निकले थे सुबह..गोरी तो थी मैं …रात का लगा काजल भी गालों पर  फैल गया था.. पता नही उन्होंने क्या देख कर पसंद कर लिया ..बाबू से बात तय कर ली और हमारी शादी हो गयी.. ससुराल बहुत अच्छा मिला मुझे।

“अम्माजी !सुंदर तो आप आज भी हो।”

“अब क्या सुंदर.. चलूँ नही तो दोनों चिल्लायेंगे। वैसे अब गर्मी की धूप और जाड़ों की ठंडी हवा नही सताती मुझे।

मैंने मन मे बोला ” अम्माजी! सब सताती है गर्मी हो या सर्दी.. पर कोई दूर करे तब ना।”

  टिफिन लटका कर तेज चाल से निकल गयी अम्मा जी..गेट बंद करके लौटी तो कमरा काफी ठंडा लग रहा था मैं तो कुछ देर पहले नये ए.सी. बारे में सोच रही थी।

दीप्ति सिंह

  बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)