सपनों का टूटना
निःसंकोच बहुत
तकलीफदायक होता हैं
परन्तु,सपने टूटते
रहने चाहिए!
सपनों का टूटना
यथार्थ से अवगत
कराना होता हैं,
हम जिस
दिवास्वपन में जीते हैं
उस से जगाना होता हैं,
स्वम् से स्वम् की भेंट,
बस यही तो है
सपनो का टूट जाना।
मनोस्थिति और
परिकल्पना
इनसे मिलकर बनता हैं
ये स्वपनलोक।
ख़ुद से बिछड़कर
खुद तक पहुचने के
बीच की जो
छणभँकुर अवधि हैं
बस यही है
सपनो का टूटना।
वैसे तो मैं कई बार
खुद से मिलकर
बिछड़ी हूँ
पर यक़ीनन ये फिर से
सपनो का टूटना मुझे
फिर एक बार
बुद्ध बनाएगा।
डिम्पल राकेश तिवारी
अयोध्या-उत्तर प्रदेश